...

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इज़्ज़त
यूँ जोड़ तोड़ के इज़्ज़त बचानी पड़ती है
झूट को सच करके कहानी सुनानी पड़ती है

एक बार जो टूटे तो वो जुड़ नहीं सके फिर
हमें देखो आके कैसे ज़िल्लत उठानी पड़ती है

मेरी नेकी हुनर ओ हमदर्दी का मोल लगता है
सितम ये हमें ख़ुद अपनी क़ीमत घटानी पड़ती है

है तमाशा छूट जाते हैं शतरंज सी बिसात बिछाके
और हमें एक एक को अपनी बात बतानी पड़ती है

हम भी सब्र के दरिया पार कर ही लेंगे एक दिन
तुम मनाओ ख़ैर कि अपनी करनी दिखानी पड़ती है
NOOR E ISHAL
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