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नारी सशक्तिकरण
"नारी सशक्तिकरण"
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नारी हूं अबला नहीं समझो मुझे! अपने पुरुष होने पर न कभी अभिमान करो !
याद करो, नारी की कोख की उपज हो तुम !
जीवन देने के पहले से ही तुम्हारा भार लिए फिरती रहीं! और मृत्युपरांत तक तुम्हारे हित में ही सोचती रही !
नारी को ना समझो कमजोर तुम, कम में ना आंको इन्हें !
नारी तो पुरुषों का अस्त्र और शस्त्र है !
उसके जीवन की ढ़ाल है !
उसके जरूरतों की दुकान है! नारी का करो आदर सदा !
ना उनका अपमान करो !
नारी रूप है दुर्गा का, तो कभी काली का !
जिस रूप में ढ़ालो वह ढ़ल जाती है !
जरूरत पड़ी तो वो चंडिका भी बन जाती है !
नारी अब सशक्त है, अब कहां वो लाचार है !
मर्दों के कंधों से कंधा मिलाकर अब चलने को तैयार है !
नारी ने खुद को साबित कर दिखाया है !
हर फील्ड में अब नारी करती अपना योगदान है !
धरती हो या आकाश नारी ने परचम फहराया है !
घर हो या हो दफ्तर का काम! सब को बखूबी निभाया है!
अपनी प्रतिभा का लोहा उसने हरदम मनवाया है !
जहां में दो कुलो का मान रखती हंसते-हंसते सब सह लेती !
उसका ना करो तिरस्कार कोई सदा ही उसका सम्मान करो !
ना करो नारी का उपहास कोई!
उसने ही तो तुमको जीवनदान दिया है और,
पुरुष होने का गौरव तुम्हें उसी से प्राप्त हुआ।

माधुरी राठौर, ✍️