...

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hum tum
दूर रहकर भी जो समाया है,
मेरी रूह की गहराई में,

पास वालों पर वो शख्स,
कितना असर रखता होगा।

रिवाज तो यही है दुनिया का
मिल जाना बिछड़ जाना,

तुम से ये कैसा रिश्ता है
न मिलते हो न बिछड़ते हो।

मेरी दास्ताँ का उरोज था
तेरी नर्म पलकों की छाँव में,

मेरे साथ था तुझे जागना
तेरी आँख कैसे झपक गयी।

नफरतों के जहान में हमको
प्यार की बस्तियां बसानी हैं,

दूर रहना कोई कमाल नहीं,
पास आओ तो कोई बात बने।
© "शायर शुभ श्रीवास्तव"