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ग़ज़ल 4 : जब किसी और के करीब हो जाओगे तुम
जब किसी और के करीब हो जाओगे तुम
हमारी खुशियों के रकीब हो जाओगे तुम
सवरने लगोगे किसी और के ही प्रेम से
देखने में कितने अजीब हो जाओगे तुम
हमारा बना बनाया नसीब बिगाड़ कर
दूसरे का खुश नसीब हो जाओगे तुम
हम रखेंगे ज़िंदा तुमको जहन में जाना
चाहे उसके जहनसीब हो जाओगे तुम
याद करोगे तुम पल पल साथ हमारा
हमारे बगैर बेतरतीब हो जाओगे तुम
दरवाज़ा खुला छोड़ रखा है तुम्हारे लिए
जब भी आओगे हबीब (दोस्त) हो जाओगे तुम
हमारे साथ थे तो बड़े ऐशों आराम से थे
देखना हमारे बगैर गरीब हो जाओगे तुम
करके हमको लाइलाज इश्क़ में अपने
हमारे रकीब के तबीब (चरागर) हो जाओगे तुम
तुम्हारे हाथों में कलम अच्छी लगती है
एक दिन बड़े अदीब (बड़ा लेखक) हो जाओगे तुम
सुधार देंगे सारी आदतें ख़राब वाली
अगर इश्क़ के ज़रीब (डंडा) हो जाओगे तुम
हमको चढ़ाया जाएगा जब सूली पर
ख़ास हमारे सलीब (सूली) हो जाओगे तुम
हम पूजेंगे तुमको इस तरह से के फिर
मोहब्बत की तहजीब हो जाओगे तुम
© Pooja Gaur
हमारी खुशियों के रकीब हो जाओगे तुम
सवरने लगोगे किसी और के ही प्रेम से
देखने में कितने अजीब हो जाओगे तुम
हमारा बना बनाया नसीब बिगाड़ कर
दूसरे का खुश नसीब हो जाओगे तुम
हम रखेंगे ज़िंदा तुमको जहन में जाना
चाहे उसके जहनसीब हो जाओगे तुम
याद करोगे तुम पल पल साथ हमारा
हमारे बगैर बेतरतीब हो जाओगे तुम
दरवाज़ा खुला छोड़ रखा है तुम्हारे लिए
जब भी आओगे हबीब (दोस्त) हो जाओगे तुम
हमारे साथ थे तो बड़े ऐशों आराम से थे
देखना हमारे बगैर गरीब हो जाओगे तुम
करके हमको लाइलाज इश्क़ में अपने
हमारे रकीब के तबीब (चरागर) हो जाओगे तुम
तुम्हारे हाथों में कलम अच्छी लगती है
एक दिन बड़े अदीब (बड़ा लेखक) हो जाओगे तुम
सुधार देंगे सारी आदतें ख़राब वाली
अगर इश्क़ के ज़रीब (डंडा) हो जाओगे तुम
हमको चढ़ाया जाएगा जब सूली पर
ख़ास हमारे सलीब (सूली) हो जाओगे तुम
हम पूजेंगे तुमको इस तरह से के फिर
मोहब्बत की तहजीब हो जाओगे तुम
© Pooja Gaur
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