...

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आ रहा है वो धीरे धीरे
अदृश्य हाथ किरणों के
मुझे छूते हैं धीरे-धीरे
महसूस होता है वह फिर आ रहा है
उजास की आभा लिए धीरे धीरे

मंद-मंद पदचाप लहरों की
मेरी ओर आती हैं धीरे-धीरे
आगोश में लेने को फिर आ रहा है
अदृश्य काया लिए वो धीरे धीरे

सरसराती हवाओं के स्पंदन
प्रेम संदेश बीज लाते हैं धीरे-धीरे
दिल की नमी पर अंकुरित होने जा रहा है
प्रेम वटवृक्ष वृहद् आकार लिए धीरे धीरे
🌹🌈🌹🌈🌹
© ऋत्विजा