P4 - चाँद की बदमाशी...!
मजबूरी में अक्सर,
ऐसा ही कुछ करना पड़ता है...!
नज़रों के सामने होकर भी जब ना दिखे जन्नत,
तो कान पकड़ के उसे दिखाना पड़ता है...!
इसी फ़िराक में "किसी" ने,
मेरे मोहल्ले की बत्तियां बुझा दी है...!
हर तरफ अन्धेरा यु घूम रहा है,
जैसे किसी ने उसे सज़ा दी है...!
ऊपर आसमान में अब कहते है,
एक खुबसूरत नज़ारा दिखेगा...!
चौदहवी का चाँद,
तारों का आँचल ओढ़ कर,
सुना में आसमान में...
ऐसा ही कुछ करना पड़ता है...!
नज़रों के सामने होकर भी जब ना दिखे जन्नत,
तो कान पकड़ के उसे दिखाना पड़ता है...!
इसी फ़िराक में "किसी" ने,
मेरे मोहल्ले की बत्तियां बुझा दी है...!
हर तरफ अन्धेरा यु घूम रहा है,
जैसे किसी ने उसे सज़ा दी है...!
ऊपर आसमान में अब कहते है,
एक खुबसूरत नज़ारा दिखेगा...!
चौदहवी का चाँद,
तारों का आँचल ओढ़ कर,
सुना में आसमान में...