वो बालपन भी बड़ा सुहाना था
वो बालपन भी बड़ा सुहाना था,
कितना मस्ती भरा वो ज़माना था।
न कोई चिंता थी, ना कोई तनाव था,
सारा दिन बस खेल-खेल में बिताना था।
सिर्फ़ एक ही डर था और वो टीचर का था,
पेट-दर्द स्कूल न जाने के लिए बहाना था।
न पैसा कमाने की फ़िक्र, ना मकान बनाने की,
रेत के घरौंदे बनाकर ही संतुष्ट हो जाना था।...