प्रतिक्षा प्रेम में
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
वैसे मैं तुझे चाहूं हरदम,
इतना ही साथ तुम्हारा हमारा था,
बिछड़ना तकदीर हमारा था,
ईश्वर की मर्जी को हमने किए स्वीकार,
अपने मन मंदिर में तुमको बसा कर,
चुप चाप महफिल से खुद को दूर हटाकर,
यादों में जीवन जीने को रब के इस फैसले को
किया स्वीकार,
प्रेम पाने का नाम नहीं प्रेम,प्रेम
में खुद को खो जाने का नाम हैं,
पा कर प्रेम किए तो क्या प्रेम किए
बिछड़कर भी सिर्फ उसके रहें ये हैं प्रेम का सार,