...

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ख़ामोशी
ख़ामोश नज़रों में सदियों से कोई कहानी ना थी।
ज़िन्दगी थी तन्हा अकेली, शामों की कोई और ज़ुबानी ना थी।
रोज़ थे धुत पैमानों की ही आरज़ू में ज़िंदादिल।
शराब पीता था मुझे, मुझे भी शराब से कोई परेशानी ना थी।।

बहकता था लड़खड़ाता था पर दिल में रंजो - गम की ज़ुबानी ना थी।
मिलता था मुस्कुरा कर सबसे, मिलने में ख़ुद से कोई हैरानी ना थी।।
आयनें थे बस यार मेरे, सुनते जो इस दिल में छुपी दास्तां।
तोहमत तुझसे दिल लगाने की किसी को कभी उठानी ना थी।।
© ज़िंदादिल संदीप