...

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बेनकाब
कुछ अहसास यूं दगा कर जाते हैं,
अमृत ​​की भाती विष पिला जाते हैं;
कड़वा घुट सच्चाई का तो उतार लेते,
पर झुठ का सेलाब केसे उतारुं;
बेनकाब चेहरे क्या किया,
हम "हम से" तुम कोन' हो गए |

© kia