...

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तुम मिलो मुझे किसी बहाने से..!
क़भी आएं ख़याल किसी दीवाने के
निकलें आँसु किसी वादे पुराने से,
कोई चेहरा गुदगुदाए हँसना चाहो
पऱ दिल भर आये जरा सा मुस्कुराने पे,
या यूँ हो के लंबी लगें छोटी सी शामें यह
औऱ मन घबराये अँधेरों के छाने से,

कोई याद आये किसी के छू जाने से
दूर जाना चाहो किसी के पास आने से,
आईना पहचानने लगे जब उदासी
छूपे ना दिल के राज लाख छुपाने से,

क़भी शर्माओ ख़ुद से आंखें मिलाने से
ख़ुद ही लगो खुदको अनजाने से,
तो याद हमको करना प्रिय
हम लौट आएंगे गुज़रे ज़माने से,

माना.. वक़्त की लहर जो गुज़र गयी
उसमें क्या मिलेगा अब कागज़ की कश्ती बहाने से,
पऱ कैद हैं जो मुहब्बत के पंछी पिंजरे में
उन्है भी तो अंबर दिखाने थे,

कुछ भी नहीं है रिश्ता तुमसे
तुम चिड़िया.. हैं हम बिखरे दाने से,
प्रिय.. मिलो ना रिवाज़ों के मुताविक मुझे
क्या मिलेगा जाल बिछाने से,

बस...
"तुम मिलो मुझे किसी बहाने से"

क़भी आएं ख़याल किसी दीवाने के
निकलें आँसु "मुझसे किये.. "
किसी वादे पुराने से..!!




© बस_यूँही