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क्या कसूर... पुलवामा ?
जिंदगी की यें लड़ाई
कैसी है बतलादें तूं ,
हें खुदा बतलादें तूं
क्या किया हमनें कसूर।।
मां-पिता का था सहारा
भाई-बहना का वो नूर ,
छोड़ दीं थीं सारी खुशियां
हो गया अपनों से दूर।।
थीं लगाईं उम्मीदें, अब
वापसी घर को ही थीं ,
अपनों की वो पुकार उनके
गूंज कानों में रहीं थी।।
आ गया वो रास्ता
उम्मीद जिसकी ना कियें ,
बिखर गए तुकडों में सारें
सपनें उनके रह गयें।।
शहादत को साथ लेकें
अब,वापसी घर को हुई ,
किलकारियों से गूंज सारी
स्मशान धरती हिल गई।।
आसमां में गूंज नारा
भारत मां की जय हुई ,
"पुलवामा" ना मिटने वालीं
ज़ख्म देकर चलीं गईं।।
... Soldier🪖
© ...@$#...
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