" हालातों की मजबूरी "
हालातों की मजबूरी थी मेरी ,
पर तेरी क्या मजबूरी थी ?
क्यों स्वार्थ से इतना घिर गया तू ,
क्या इतनी स्वार्थता जरूरी थी ?
घर, परिवार, समाज, संसार ;
वह तो सब बहाना था ,
वाणी और नजरों ने तेरी ;
पहले ही कर दिया इशारा था !
देह और सुंदरता से ही जुड़ा ;
बस तेरे मन का धागा था ,
सुख-दुख और जीना-मरना ;
इन सबसे कहाँ तुझे कोई नाता था ?
स्वार्थ ना...
पर तेरी क्या मजबूरी थी ?
क्यों स्वार्थ से इतना घिर गया तू ,
क्या इतनी स्वार्थता जरूरी थी ?
घर, परिवार, समाज, संसार ;
वह तो सब बहाना था ,
वाणी और नजरों ने तेरी ;
पहले ही कर दिया इशारा था !
देह और सुंदरता से ही जुड़ा ;
बस तेरे मन का धागा था ,
सुख-दुख और जीना-मरना ;
इन सबसे कहाँ तुझे कोई नाता था ?
स्वार्थ ना...