...

7 views

ख़्वाब की शीशी
एक ख़्वाब की शीशी में,
रतजगा भरा जब,
मालूम था पशोपेश रहेगी,
मीँचने की पुडिया में,
जगना भरा तब,
जानते थे खीँचातानी चलेगी,
दो ऊँगलियों के बीच,
जब फँसाई थी ऊँगली,
लगा था उलझनें बढ़ेंगी,
मुश्किल था न ये सब
तो कोशिशें पुरज़ोर थी,
पर ख़्वाब की शीशी तो
विषैली थी,
रतजगे को उसने पत्थर बनाया,
पुडिया खुल गई, जगना सो गया,
ऊँगलियाँ अलसाई सी,
उसमें बस छूटी
छाप नज़र आई थी।
©jignaa___