...

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जिंदगी
नन्ही सी कली कब फूलबनी पता ना चला
मां के आंचल से निकलकर कब नए रिश्ते के पल्लू में दबी पता ना चला....
टूट के मेरे सपने जब चूड़ी और पायलों की छन-छन और खनखन मे दबे पता ना चला खिलखिलाती हंसी कब खामोशी बनी पता ना चला..खेल खिलोने छूट कै कब रसोई के बर्तन थमे पता ना चला ..कब जिंदगी का कारवा आगे चला पता ना चला ..उसमे ऐसे हि सिमट कै रह गई पता ना चला।