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मगरूर इश्क का जवाब
तुम्हारे एहसान का बदला, हम कैसे और कहाँ चुका पाएँगे ?
पर इस सिले के अंजाम का शुक्रियादा, जरुर करते रहेंगे ।

मिले जो तुमसे सारे गम हैं, वजह इन्ही से तो बने हैं हम इतने मजबूत ।
हाँ कुछ पल के लिए टूटे तो थे जरुर, पर किये नहीं खुदको नेश व नाबुत ।।

गर उस वक्त तुमसे हामी सुन लिए होते, तो फिर आज हम इतने काबिल न बन पाए होते ।
क्यूँके तुम्हारी जैसी रुआब है, और क्या कर पाते जी हाँ... जी हाँ... करके गुलाम बनकर रहजाते ।।

सीने में मिले दर्द को सहते हुए कहाँ कर पाए हम खुदको तन्हाइयों से बेगाना ।
क्यूँके तुमसे दूर जाने के बाद ही हमने अपनी जिंदगी के मकसद को है पहचाना ।।

खुदको बेहतर बनाने के रास्तो में, दर्द और शिकस्त ने कुछ पल के लिए हमें बहुत थकाया ।
पर जिस वजह से ठुकराया था तुमने, यही कमी और शिकायत ने बार-बार हममें जुनून जगाया ।।

आज हम ये हैं, जिनसे आते हैं लोग अपने अपने सलाह मांगने ।
और कल हम वो थे, जिसको तुमने किया था तैय्यार सबमें बांटने ।।

तुम्हारे पल पल के यही नजर अंदाज ने हमें बनाई और भी पुख्ते ।
तुम जैसे बने हमपर मेहरबान वैसे न देना और किसीको भी ये नुस्खे ।।

© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम