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शिक्षकों की आधारभूत अद्वितीय भूमिका
*"मानव जीवन के विकास में शिक्षकों की आधारभूत अद्वितीय भूमिका"*

*जिन्हें आज हम शिक्षक कहते हैं उन्हें पहले के जमाने में गुरु कहा जाता था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पांच गुरुओं को विशेष स्थान प्राप्त है। (1) देवगुरु बृहस्पति जी (2) महर्षि वेदव्यास जी (3) महर्षि बाल्मीकि जी (4) दैत्यगुरू शुक्राचार्य जी (5) गुरु विश्वामित्र जी।*

ग्रंथों के रचनाकारों ने इनमें "परम सदगुरु/शिक्षक निराकार ज्योति बिन्दु परमात्मा शिव का नाम छोड़ दिया है। वास्तव में उसका नाम ही प्रथम लिखना चाहिए था। यह इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने उस कालखंड में परमात्मा के साकारी स्वरूप का अनुभव नहीं किया था। लेकिन फिर भी यह कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी दिव्य बुद्धि से अव्यक्त स्वरूप परमात्मा की दिव्य अनुभूतियां अवश्य की थीं। अज्ञात स्रोत (परमात्मा) से अज्ञात रूप से उनके अन्तर्जगत में प्रेरणाओं का झरना तभी तो बहा। उनके वे निर्झर झरने ही आज ग्रंथों के रूप में हमें उपलब्ध हैं।

*विश्व को नई दिशा दिशा देने में, समाज के नैतिक गठन में, अध्यात्मिक उन्नति में, विज्ञान तकनीकी की प्रगति में, व्यक्ति को सुसंस्कृत करने में आदि अनेक पहलुओं में मनुष्य के उत्थान के लिए गुरुओं व शिक्षकों (बुद्धिजीवियों/Intelligentsia) का अनमोल योगदान आदि काल से ही रहा है। आज के इस शिक्षक दिवस पर हम हमारे परम सदगुरु, गुरुओं और शिक्षकों को तहे दिल से याद करते हैं तथा उन्हें अपने भाव सुमन अर्पित कर अपना हार्दिक सम्मान प्रकट करते हैं। 🙏👍🌹✋*
© Kishan Dutt Sharma