...

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अरमान
मै चाहता हूं,
मै चाहता हूं , मेरे ज़हन से सवाल निकले
सवाल ऐसा कि सब दिलों का गुमान निकले
कि इक परिंदा क़फस में बैठा सोच रहा है
वो भी उड़ सकता है उतना ही कि जितना
उड़ सकते हैं सारे पंछी
या फिर उससे भी ज़्यादा
अब देखना ये है कि ये उसका गुमान है या फिर हक़ीक़त
मै चाहता हूं ,
क़फ़स से ये परिंदा हाल निकले
किसी की बातों में आकर सब कुछ कर रहा हूं
मै अपना चाह कर भी कुछ न कर रहा हूं
न जाने क्यूं ये सारी बातें मेरे अंदर
रफ्ता रफ्ता मुंजमिद सी हो रही हैं
कि जैसे सब कुछ साज़िशन ही चल रहा है
कोई तो है जो वबाल बनकर मेरे अंदर
चल रहा है , पल रहा है
मै चाहता हूं
मेरी ज़िन्दगी से वबाल निकले
किसी की यादें मुझको अक्सर झिंझोड़ती हैं
कि जैसे मेरे कानों में सरगोशी सी कोई कर रहा हो
किसी को हरदम मेरी निगाहें ढूंढती हैं
किसी को ख़्वाबों में पाकर अक्सर झूमती हैं
मुसलसल मेरी आंखों से आंसू बह रहे हैं
ये मेरी ख़्वाहिश है , कि इनको कोई पोछे
मै चाहता हूं,
अब किसी का रुमाल निकले
मै ग़म शनास हर दर्द को पहचानता हूं
इन रोज़ मर्रह के दुखों को मानता हूं
मगर इक दर्द ऐसा भी तो होना चाहिए
जिसके होते चश्म ए तर सैलाब हो जाएं
जिसके होते ज़िन्दगी इन्कलाब हो जाए
वही इक दर्द जो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी कर दे
वही इक दर्द जो हर क़तरे को बंदगी कर दे
वही इक दर्द जो सारे जहां का दर्द लगता हो
वही इक दर्द जो हमदर्द होने से भी बटता हो
वही इक दर्द जो कि अब पहचान बन जाए
वही इक दर्द जिससे मुश्किलें आसान बन जाए
इक दर्द जिससे शायरों का ख़्याल निकले
मै चाहता हूं
दर्द भी तो कमाल निकले ।

✓शाबान "नाज़िर"

© SN