...

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महंगी पड़ी
तुझसे इश्क़ का जो अंजाम रहा ,
हमें आशिक़ मिज़ाजी बहुत महंगी पड़ी।

तुझसे बिछड़कर अपनों से भी बिछड़े ,
हमें बजांरा मिज़ाजी बहुत महंगी पड़ी।

तुझे खोकर ख़ुद को भी गंवाया ,
हमें आवारा मिज़ाजी बहुत महंगी पड़ी।

जलाके सिगरटें चार सुकूं के दम तो पाए ,
पर हमें आतिश मिज़ाजी बहुत महंगी पड़ी।

तिरे हर रंज को खुशी से माथे से लगाया ,
हमें खुश मिज़ाजी बहुत महंगी पड़ी।।
© khak_@mbalvi