ग़ज़ल... कुबूल आँख़ें कुबूल आँख़ें
बह़र _:- 12122,12122
जहाँ ये कहता हैं सूल आँख़ें
हैं जिस्म का एक फूल आँख़ें
ज़रा ऐ लोगों इन्हें संभालो
पकड़ रही हैं ये तूल...
जहाँ ये कहता हैं सूल आँख़ें
हैं जिस्म का एक फूल आँख़ें
ज़रा ऐ लोगों इन्हें संभालो
पकड़ रही हैं ये तूल...