...

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एक उम्र गुज़ारी है !!!
वक़्त से वक़्त के लिये हर वक़्त लड़े हैं हम
अपने लिए हर एक फ़ैसले पर अड़े हैं हम
यूँही नहीं बताता रहस्यपूर्ण ये ज़माना हमें
हाँ सचमुच अपनी उम्र से काफ़ी बड़े हैं हम!!

ज़िंदगी चली है किसी रोज़ एक रफ़्तार सी
लगती थी उस रोज़ बेफ़िज़ूल बे-कार सी
जीने का तो जैसे वज़ूद ही ख़त्म हो गया था
अनुभवों के बदले पड़ी वक़्त की मार सी!!

कहाँ कितना कैसे क्या सब बताते सबको
हादसों पर अपने यक़ीन दिलाते सबको
रख लिए भीतर ही दफ़्न करके राज़ सारे
कहाँ तक अपने पीठ पीछे हँसाते सबको!!

तक़दीर में कभी जज़्बातों को लिखना होगा
फिर एक बार बीती बातों से भिड़ना होगा
सोचा ना था की लफ़्ज़ों से राब्ता रखकर
लफ़्ज़ों का मेरे मुझपर यूँ चीखना होगा!!

लगता है अपनी एक एक साँस उधारी है
ख़ुदा जाने ग़लतियाँ कितनी क्या सुधारी है
संवारा जिसमे ख़ुद को वो पल था ख़ास
उस एक पल में अपनी एक उम्र गुज़ारी है!!

© witty.writer