ग़ज़ल
इश्क़ की राहों का राहगीर हूँ
यूँ ही कोई आवारा नहीं हूँ मैं
बहती लहर हूँ उफनती नदी की
कोई ठहरा हुआ किनारा नहीं हूँ मैं
हर ग़म सीने से लगा लेता हूँ चुपके से...
यूँ ही कोई आवारा नहीं हूँ मैं
बहती लहर हूँ उफनती नदी की
कोई ठहरा हुआ किनारा नहीं हूँ मैं
हर ग़म सीने से लगा लेता हूँ चुपके से...