सुबह का इंतज़ार
ना जाने किस सवेरे की तलाश में हू,
उस खिड़की के किनारे बैठें,
कोनसी सुबह की राह देख रही हूँ,
कोनसे दिन के सूरज के लिए,
पलकें बिछा कर बैठी हु।
आँखों में नमी और चेहरें पर,
हल्की सी मुस्कुराहट हैं,
कुछ बातें होंठों पर हैं,
पर कहने का सामर्थ्य नहीं हैं।
मेरा साहस छोड़ रहा साथ मेरा,
शायद इस रणभूमि में मेरा ये आखिरी दंद् हैं,
परिणाम पराजय हैं इस युद्ध् का,
बस जानें से पहले उस सुनहरी सुबह की
उम्मीद हैं।
जो मैं बरसों से किनारे खड़ीं इंतज़ार कर
रहीं थी।
© shivika chaudhary
उस खिड़की के किनारे बैठें,
कोनसी सुबह की राह देख रही हूँ,
कोनसे दिन के सूरज के लिए,
पलकें बिछा कर बैठी हु।
आँखों में नमी और चेहरें पर,
हल्की सी मुस्कुराहट हैं,
कुछ बातें होंठों पर हैं,
पर कहने का सामर्थ्य नहीं हैं।
मेरा साहस छोड़ रहा साथ मेरा,
शायद इस रणभूमि में मेरा ये आखिरी दंद् हैं,
परिणाम पराजय हैं इस युद्ध् का,
बस जानें से पहले उस सुनहरी सुबह की
उम्मीद हैं।
जो मैं बरसों से किनारे खड़ीं इंतज़ार कर
रहीं थी।
© shivika chaudhary