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प्रतिक्षा
#प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
तपस्या वर्षों का जहाँ है रंग
वचनों से ऊपर है जो,
उम्मीदों से परे है जो
खोने पाने के डर से,
जो न व्याकुल होते
निश्चल प्रेम की पराकाष्ठा
शून्य से अनंत तक रहने का वादा
समर्पण की होती असीमित भाषा
पूर्ण में सब समाए एक दूजे का आधा आधा।

नेहा माथुर'नीर'