सोच
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
बिना सोचे समझे वाणीसे सन्हार करता है
ढलते सूरज से सीख की जिसको कोई नही झुका सकता,
वो भी कुदरत के सामने सिजदा करता है,
जैसे जिन्दगी का पैहा तय है वैसे ही हर हार की जीत तय है,
सोच,
ये जहा ऐसे ही जीया करता है
अपने पराये के भवऱ मे फसे ए इन्सान,
देख मुड कर,
सब अपने है कौन पराया,
ये भवर से निकल ,
तुझे भी,
दुनिया अपने ही रंग में रंग लेगी
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
बिना सोचे समझे वाणीसे सन्हार करता है
ढलते सूरज से सीख की जिसको कोई नही झुका सकता,
वो भी कुदरत के सामने सिजदा करता है,
जैसे जिन्दगी का पैहा तय है वैसे ही हर हार की जीत तय है,
सोच,
ये जहा ऐसे ही जीया करता है
अपने पराये के भवऱ मे फसे ए इन्सान,
देख मुड कर,
सब अपने है कौन पराया,
ये भवर से निकल ,
तुझे भी,
दुनिया अपने ही रंग में रंग लेगी
Related Stories