...

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अकेला रह गया तो क्या....
अकेला था अकेला हूँ ,अकेला रह गया तो क्या
नदी के जो किनारे था, वही घर बह गया तो क्या

नहीं आसान होता है, दिलों की बात को कहना
नशे में था कोई पागल, वो सच को कह गया तो क्या

नहीं रूकती हैं ट्रेनें वो, जो के टाईम से चलती हैं
मुसाफिर ही अगर कोई, जो पीछे रह गया तो क्या

अँधेरा था बहुत उस रात,वो कुछ देख ना पाया
तुम्हारी आँख से कोई, जो आँसू बह गया तो क्या

पुराना था बहुत वो घर ,जहाँ बचपन गुजारा था
नये में रह रहा हूँ मैं, पुराना ढह गया तो क्या

न जाने लोग क्या क्या और,कैसे जख्म सहते हैं
बिछड़ने के बड़े से जख्म, को वो सह गया तो क्या

उसे देखो अभी तक भी , वो मेरे पास बैठा है
कहीं अब और चलते हैं, उसे 'वो' कह गया तो क्या

संजय नायक"शिल्प"