...

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जीवन यूँ ही बीत रहा है.....
धीरे धीरे रीत रहा है
जीवन यूँ ही बीत रहा है

हमें कभी जो मिल ना पाई
नाम उसी का प्रीत रहा है

हर मौसम में अपने लब पर
बिरहा वाला गीत रहा है

जिन जिन को लड़ना सिखलाया
वो ही हम से जीत रहा है

शाम सवेरे मय औ प्याला
ये ही अपना मीत रहा है

उसके मुख पर रही ललाई
अपना चहरा पीत रहा है

बाहर सब को शांत दिखें हैं
लहू कहाँ पर शीत रहा है

संजय नायक"शिल्प"