...

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"फरक़"
मैं शायर का ख़्वाब बनूं, तुम अर्ज़ सुर्ख बन जाओ,
मुझे सुने हर शख्स यहां, तुम इरश़ाद कहलाओ।

नग़मे हों हम इश्क़ के गहरे, दूर मिसालें हो जायें,
हीर-रांझे बने हम हीं से, और मुकम्मिल पा जायें।

मैं-तुमसे बचके जाना, सबमें तामील सजे,
फरक़,फरक़ से रहे फरक़ से, 'वाणी' बिस्मिल नाम सजे।

© प्रज्ञा वाणी