'कुक्कुर विमर्श' (भोजपुरी कविता)
कबो कबो हम सोचिले का कुकुरो सन बतियावत होइहें?
जब मनये खदेरावत होइहें का ओन्हरो गरियावत होइहें?
आधी रोटी खातिर जब कुल घर घर सबके हेरत होइहें,
मिल गइले पर बाकी कुकुरे मिल एक्के के घेरत होइहें।
सो च तब कइसे बेचारे अपने में फ़रियावत होइहें,
कबो कबो हम सोचिले का कुकुरो सन बतियावत होइहें?
जब आवारा कुकुरे कौनो राखल कुक्कुर देखत होइहें,
ओकर भागि देख के का अपने हालत पर...
जब मनये खदेरावत होइहें का ओन्हरो गरियावत होइहें?
आधी रोटी खातिर जब कुल घर घर सबके हेरत होइहें,
मिल गइले पर बाकी कुकुरे मिल एक्के के घेरत होइहें।
सो च तब कइसे बेचारे अपने में फ़रियावत होइहें,
कबो कबो हम सोचिले का कुकुरो सन बतियावत होइहें?
जब आवारा कुकुरे कौनो राखल कुक्कुर देखत होइहें,
ओकर भागि देख के का अपने हालत पर...