...

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आदमी इन दिनों

आदमी इन दिनों है इक ऐसे चक्रव्यू मे यूँ घिरा ,
जहाँ भूख, बेरोजगारी, और सिर पर छत के बजाय कर्ज का है पर्बत बड़ा।

आदमी इन दिनों है अन्तरजाल से है कुछ ऐसे आहत,
घंटों भ्रमणध्वनी ईस्तेमाल करने की चाहत मे बन गया है मनोरुग्ण बड़ा।

आदमी इन दिनों है इंसानियत से काफी दूर,
चोरी, मक्कारी, धोखेबाजी ही जीने की हो गई है जैसे रीत।

आदमी इन दिनों है पहुँचा चाँद और मंगल पर,
लेकिन अपनी माँ वसुंधरा को प्रदुषित करते समय जरा भी ना डरा।

आदमी इन दिनों है आदमी का ही इक दुश्मन बड़ा,
जीवन में केवल धनवान को ही है सम्मान बड़ा।

आदमी इन दिनों हो गया है विचारो से अंध बड़ा,
बिना, सोचे समझे ही अनुकरण करता फिर रहा!

आदमी इन दिनों उस दौर से गूजर रहा,
जहाँ सारे जवाब तो है लेकिन उसे अपने अंतर्मन की तरफ जाने का रास्ता ही नहीं मालूम पड़ रहा।

आदमी इन दिनों भटकता जा रहा है इंसानियत से कई दूर ,
क्या उसे मार्ग मिलेगा? क्या वह अपने अंतर्मन की सदा सुन पायेगा कभी? इन सभी विचारों को मन मे ले कर असमंजस मे है दार्शनिक पड़ा!

© Infinite Optimism