...

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Ek बेटी का दुःख
बाबा मै भी तो बिटिया तेरी हुँ,
मैं भी कितनी प्प्यारी हूँ,
फिर मुझे क्यो छोड़ रहे,
भेज रहे अपने से दूर।
क्यो आजतक जो थे अपने,
बना रहे मुझको बेगाने।

यह घर जो भाता था आप सा,
जाने क्यो नही लगता अपना सा,
छूट रहे सब संगी साथी,
छूट रहे इस घर के साथी।

काश मै भी एक बेटा होती,
अपने बाबा की साथ ही रहती,
नही छूटता गर ये मेरा,
नही टूटता मन ये मेरा।

वह घर भी मेरा अपना है
जाने क्यो लगता सपना है।
बाबा आप नही हो सब है,
मेरी खूशिया भी तो कम है।
आँशु तो तुम्हारे भी आते,
मन में सौ सबाल उठाते,
बेटी को जाना एक दिन,
है नही रहना क्यो सब दीन।
बाबा मै भी तो तेरी बिटिया हूँ
क्यो करते हो खुद से दूर।




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