...

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वीरान शहर
सृजन 🅰️ अल्फाज़

हो गया ये शहर वीराना यहां आनें से डरते हैं सब
देख कर मका ए खंडहर, दीवारे आहे भरते हैं सब

बीते बचपन की यादों में खो कर जो सिहरते हैं अब
बीत गया एक ज़माना तस्वीरों में देखा करते हैं सब

तंग मैं हूं या हैं ये ज़माना बैठ कर सोचा करते हैं सब
उठ वो आती हैं हूक ए याद जो टीसा करती हैं अब

बैठ आगोश ए तन्हाईयों में खुद से पूछा करते हैं अब
ना मिली हसरतें मंज़िलों की तो कोसा करते हैं सब

देख बनते मका शहर के गांव भी सोचा करते हैं अब
जोड़ते हैं ईंट गारा लोग फिर भी उनमें ठहरते हैं कब

मतलबी हैं सब यहां पर बसते लोग मतलबी यहां हैं अब
तोड़ देते हैं वो घरोंदा भी जहां प्यार से रहा करते हैं सब



© दीपक बुंदेला आर्यमौलिक