दास्तान- ए- इश्क़
सौदा हमारा कभी बाजार तक नहीं पहुँचा,
इश्क़ था जो कभी इजहार तक नहीं पहुँचा,
यूँ तो गुफ़्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नहीं पहुँचा,
...
इश्क़ था जो कभी इजहार तक नहीं पहुँचा,
यूँ तो गुफ़्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नहीं पहुँचा,
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