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दास्तान- ए- इश्क़
सौदा हमारा कभी बाजार तक नहीं पहुँचा,
इश्क़ था जो कभी इजहार तक नहीं पहुँचा,
यूँ तो गुफ़्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नहीं पहुँचा,
जाने कैसे वाकिफ हो गया तमाम शहर,
दास्तान- ए- इश्क़ वैसे अखबार तक नहीं पहुँचा,
शर्तें दूसरे की मंजूर थी यूं तो,
पर मसौदा हमारा कभी करार तक नहीं पहुँचा,
गहराई दोस्ती की हम नापते भी कैसे,
रिस्ता हमारा कभी तकरार तक नहीं पहुँचा ❤
इश्क़ था जो कभी इजहार तक नहीं पहुँचा,
यूँ तो गुफ़्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नहीं पहुँचा,
जाने कैसे वाकिफ हो गया तमाम शहर,
दास्तान- ए- इश्क़ वैसे अखबार तक नहीं पहुँचा,
शर्तें दूसरे की मंजूर थी यूं तो,
पर मसौदा हमारा कभी करार तक नहीं पहुँचा,
गहराई दोस्ती की हम नापते भी कैसे,
रिस्ता हमारा कभी तकरार तक नहीं पहुँचा ❤
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