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बिहार का बिहार करना ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बड़ा सुकून था , कच्ची झोपड़ियों में ,
हम ये कहते ,दादी को सुना था ,
मिट्टी की खुशबू,बारिश से मिल कर आती थी।
उन मिट्टी की दीवारों के कान नहीं होते थे,
तब आपस में संग्राम नही होते थे ,
सुना है पकी ईंटो के कान निकल आए है ?

रात में चांद चांदनी के संग अभियान करने आता था ,
रात में गुलर के फूल की सुगंध होती थी ,
हवाओं का टोला,लिए झोला,
पुष्प बीज बो जाती थी,
सुना है अब हवा बीमार है ? बीजरोपड इंसान कर रहे है ?

कभी मौका रहे तो ,बिहार में बिहार करे ,
इन्सान ने संजोए है ,अपनी संस्कृति, कला को आज भी ,
सुना है वहा अब तक भ्रष्टा चार का औजार नही आया है ?
हवाएं आज भी बीज रोपड़ करती है ,
दीवाले आज भी अपने कान बंद किए है ।

© @खामोश अल्फाज़ ©A.k