क्या खोया क्या पाया
कोरा कागज जिसमें लिपटा एक नाम है
सारा शहर आज उसका मेहमान है
तन पर उधार की चादर है और मन में सन्नाटा
यहां मिल गई उसे मुक्ति उसका यही शमशान है
देख रहा है खेल जगत का, मन में मगर विराम है जो झूठी दरिया बह रही, आज यही उसका ईनाम है
दुखी है मन...
सारा शहर आज उसका मेहमान है
तन पर उधार की चादर है और मन में सन्नाटा
यहां मिल गई उसे मुक्ति उसका यही शमशान है
देख रहा है खेल जगत का, मन में मगर विराम है जो झूठी दरिया बह रही, आज यही उसका ईनाम है
दुखी है मन...