...

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पहली मुलाकात
नहीं भूले हैं हम उनसे वो पहली मुलाकात,
जब नजरें उनकी लगाए बैठी थी हम पर घात,

कहना बहुत कुछ था मगर कहाँ कर पाए कोई बात,
लफ्ज़ ही हमारे दे रहे थे हमें मात,

उन्हें सूझ रही थी ना जाने क्या क्या खुराफात,
हमें तो बस दिख रही थी उनमें सारी कायनात,

उनकी जुल्फें जैसे हो शतरंज की कोई बिसात,
हमें घेरे जा रहे थे उनके लिए हमारे जज्बात,

ठान लिया था की उनके यहां लेकर जाऊं बारात,
बिना किसी देरी बना लूं उन्हें अपनी शरीक-ए-हयात,

आंखें खुली, ख़्वाब टूटा, जैसे ही गुजरी रात,
मगर नहीं भूले हैं हम उनसे वो पहली मुलाकात।


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