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कविता:–मां का बलिदान
इक सत्य घटना पर आधारित मेरी स्वरचित कविता
कविता:–मां का बलिदान

आंखों में ममता और चेहरे पर उसके मुस्कान रह गई
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

बहते दर्द के पसीने से, लगी औलाद जब सीने से तो,
मानों विदारक–पीड़ा भी आंसुओं में बह गई,
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

छोटा कर दिया मां तूने आज भगवन को
ये उस नवजात की चीखें कह गई
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

धन्य हो.... हे जन्म जननी!!
कर अंकुरित नव द्रुम को ख़ुद निढ़ाल पल्लव सी ढह गई,
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

आंखों में ममता और चेहरे पर उसके मुस्कान रह गई
वो मां है जो हंसते–2 औलाद की खातिर बलिदान दे गई।

चेतन घणावत स. मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043