...

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तलब
साकी को है फकत इक जाम की तलब,,
बेकरार दिल को,,थोडी आराम की तलब,,

इस कदर पोशीदा है इश्क उनका,,क्या कहें,,
और हमे है बस,,,उनके ही नाम की तलब,,

कोई दरिया हमारी,,तीश्नगी को न बुझा सका,,
हर वक्त थी हमें,, दिदार-ए-इनाम की तलब,,

हमें इक शख्स मे,,कायनात नजर आता है,,
औ उसको है,,दुनिया तमाम की तलब,,

कैसे मुदावा होता,,मर्ज-ए-मोहब्बत का,जीते जी,,
महबूब को थी,हमारे कत्ल-ए-आम की तलब,,,

© kuhoo