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विधासागर
विधासागर

पुस्तकालय भवन में यारा
देखा हमने दिलकश नज़ारा
हाथों में पुस्तक और
कदमों में हथियार को पाया ।

जानकर भी नादान रहा
भेड़ चाल चलता हुआ
ज्ञान के अभाव में देखो
खुदगर्जों संग, बावरा बना ।

आतंक लिए घूमने वाला
सिर झुकाए पुस्तक थामा
खुद को पाने की खातिर
ग्रंथालय का आश्रय पाया ।

भटका हुआ, सही राह आया
मानव का विश्वास जगमगाया
पुस्तकों ने रोशनी से अपने
रोशन किया, संसार ये सारा ।

गागर में जो सागर समाया
दिव्य ज्योत प्रकाश फैलाया
धीरे धीरे मानव अंदर
विधासागर, अपना रंग चढ़ाया ।

रजनी भंडारी
✍️...
(स्वरचित)
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