हिंदुस्तानी
जाती पाती ऊंच-नीच से क्या है हमको लेना
जो मिले प्यार से हमने सीखा प्यार उसी को देना हम तूफानों से टकरा जाते हैं टूटी कश्ती में
राम रहीम और अब्दुल खाना भेद नहीं है चस्ती में मां का प्यार, डांट बाप की सारी उम्र गुजर जाती हैं हिंदुस्तानी होने की पहचान नजर आ जाती है
हम बात नहीं करते हैं मंदिर मस्जिद वालों की
हम बात नहीं करते हैं मधुशाला के प्यालो की
हम बात नहीं करते हैं राजनीति की चालो की
हम बात नहीं करते हैं घोर अंधेरे जालो की
हम बात किया करते हैं मीरा के इक तारे की
हम तो बात किया करते हैं चेतक के टनकारों की
हम तो बात किया करते हैं, राणा के हुंकारों की हम बात किया करते हैं खुले चांद सितारों की
हमसे मत पूछो मजहब की परिभाषा क्या होती है हमसे मत पूछो गद्दारों की गद्दारी क्या होती है
हम बोले तो दुनिया में उथल-पुथल मच जाती हैं हिंदुस्तानी होने की पहचान नजर आ जाती है।।
हम पूजे हैं अंबर और पूजे हैं धरती प्यारी
वक्त पड़े तो हम पूजे हैं मां चंडी मां दुर्गा काली शीश कटा कर भी रणभूमि में डट जाते हैं
वंदे मातरम गाते गाते फांसी तक चढ़ जाते हैं
रंग दे बसंती धुन में जहर प्याले पीते हैं
तूफानों के आंगन में उछल कूद कर आते हैं चौपालों पर गीत फागुन के मस्ती चढ़ती जाती है हिंदुस्तानी होने की पहचान नजर आ जाती है।।
मजहब मेरा देश नहीं है
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई मेरा कोई वेश नहीं है
मैं नहीं मिलता काबा और शिवालों में
मैं मिल जाऊं भूखे की रोटी और निवालों में
बन गुलाब दुश्मन की छाती पर टंग जाता हूं
अपनों की टोली में तीनों लोगों पा जाता हूं
सूखे मन पर मेरी कलम बन इंद्रधनुष छा जाती है हिंदुस्तानी होने की पहचान नजर आ जाती है।।
© मनोज कुमार
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