#चराग़-ए-रौशन
यूँ तो कहने को होगी वो ख़ुशी की बज़्म,
चराग़-ए-रौशन भी तो हर-सू कम नहीं होंगे,
मुक़म्मल ज़श्न में होगी फिर भी एक ख़लिश,
क्योंकि मेरी महफिल में ऐ हमनवाँ तुम नहीं होंगे.....
भले तिरा नाम ख़ामोश ज़ुबाँ पर ठहरा होगा,
तड़पते लबों पर तेरी आमद के वहम नहीं होंगे,
इंतज़ार-ए-यार में धड़कन बेसबब फड़फड़ाएगी,
फिर कैसे कहूँ...
चराग़-ए-रौशन भी तो हर-सू कम नहीं होंगे,
मुक़म्मल ज़श्न में होगी फिर भी एक ख़लिश,
क्योंकि मेरी महफिल में ऐ हमनवाँ तुम नहीं होंगे.....
भले तिरा नाम ख़ामोश ज़ुबाँ पर ठहरा होगा,
तड़पते लबों पर तेरी आमद के वहम नहीं होंगे,
इंतज़ार-ए-यार में धड़कन बेसबब फड़फड़ाएगी,
फिर कैसे कहूँ...