...

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#चराग़-ए-रौशन
यूँ तो कहने को होगी वो ख़ुशी की बज़्म,
चराग़-ए-रौशन भी तो हर-सू कम नहीं होंगे,
मुक़म्मल ज़श्न में होगी फिर भी एक ख़लिश,
क्योंकि मेरी महफिल में ऐ हमनवाँ तुम नहीं होंगे.....

भले तिरा नाम ख़ामोश ज़ुबाँ पर ठहरा होगा,
तड़पते लबों पर तेरी आमद के वहम नहीं होंगे,
इंतज़ार-ए-यार में धड़कन बेसबब फड़फड़ाएगी,
फिर कैसे कहूँ ख़ुशियों में शरीक-ए-ग़म नहीं होंगे....

इक नज़्म पढ़ेंगे तेरे नाम पर रौनक-ए-महफ़िल में,
क्या असर लफ़्जों का,गर दीवाने से हम नहीं होंगे,
परवाने सी मेरी ख़ाक यहाँ-वहाँ उड़ेगी फिर शब-भर,
पर किरचें समेटने को वहाँ मेरे सनम नहीं होंगे......

छलके जाम,हुस्न-ओ-शबाब बिखरा होगा हर शय में
पर महफ़िल में तन्हा हम रफ़्ता-रफ़्ता मर रहे होंगे,
दिल- फ़रेब महबूब यूँ तो होंगे लाखों इस ज़माने में,
मगर हिज़्र में जलाते मेरे महबूब से बेरहम नहीं होंगे।
~Monika Agrawal ✒

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