...

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ख़ामोश इश्क
जिंदगी के कागज पर, अश्को से कुछ लिखती है,
उसकी आँखों से आज, दरिया बहती दिखती है,
देखती है कभी, किताब में रखे सूखे गुलाब को,
गमो के बादलो में घिरे हुए आफ़ताब को,
बीते पलो की यादों को, अश्कों की माला में पिरोती है,
उसकी आँखों से आज, दरिया बहती दिखती है,
देखती है कभी आईने में, धुंधले से अक्स को,
वक्त की बेडियों में जकड़े हुए शख्स को,
अश्को में भीगे दुप्पट्टे से आइना पोंछती है,
जिंदगी के कागज पर, अश्को से कुछ लिखती है,
उसकी आँखों से आज, दरिया बहती दिखती है,
देखती है कभी, सदियों से खामोश दरवाजे को,
पास की गली से गुजरते हुए जनाजे को,
ना जाने किसकी यादो में वो फूट-फूट कर रोती है,
उसकी आँखों से आज, दरिया बहती दिखती है...

© अजय खेर
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