हे नारी तुम जाग उठो
क्यों बहू बेटियाँ जलने पर मजबूर हैं, क्यों बलि वेदी पर चढ़ रही
क्या भूख है समाज की जो मिटती नहीं, क्यों जीवन अंत हो रहे
क्या चाहत है दुनिया की, द्रौपदी के पात्र की तरह खत्म होती नहीं
पूरी करने की कोशिश में, कितने ही ज़िंदा लाश बन ख़ुद ढो रहे
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की गूँज, हर तरफ़ हर दिशा है मग़र
ब्रह्मांड से नवजीवन की उत्पत्ति के स्त्रोत धीरे-धीरे खत्म कर रहे
कभी बेटे की चाहत में, कभी दहेज़ के लालच में हर घर मिट रही
और कुछ नहीं तो, आपस में विचार ना मिलें तो अलगाव हो रहे
कैसे समाज की नींव हम रख रहे, क्यों ऐसे बीज को हम जन्म दें
जो भविष्य में नारी के पतन का...
क्या भूख है समाज की जो मिटती नहीं, क्यों जीवन अंत हो रहे
क्या चाहत है दुनिया की, द्रौपदी के पात्र की तरह खत्म होती नहीं
पूरी करने की कोशिश में, कितने ही ज़िंदा लाश बन ख़ुद ढो रहे
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की गूँज, हर तरफ़ हर दिशा है मग़र
ब्रह्मांड से नवजीवन की उत्पत्ति के स्त्रोत धीरे-धीरे खत्म कर रहे
कभी बेटे की चाहत में, कभी दहेज़ के लालच में हर घर मिट रही
और कुछ नहीं तो, आपस में विचार ना मिलें तो अलगाव हो रहे
कैसे समाज की नींव हम रख रहे, क्यों ऐसे बीज को हम जन्म दें
जो भविष्य में नारी के पतन का...