...

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कहाँ नही हो तुम...
बहुत सन्नाटा है चारों ओर,
यूँ ही बैठी हूँ थकी थकी सी!
हल्की हल्की हवा चल रही है,
खुला आसमां, बादलों का आना-जाना!
कुर्सी पर आधी जागी, आधी सोयी मैं,
पलकें कभी खुली, कभी बुझी बुझी सी!
मेरी उंगलियाँ दीवारों पर कुछ लिख रही थी!
ऐसे ही ... बेख़याली में ...
अचानक ग़ौर किया तो देखा .. तुम्हारा नाम है!
हँस पड़ी अकेले में मैं ...
बताओ ना.... कहाँ नही हो तुम !!