बंसतपंचमी
रचयिता ब्रह्मा ने संपूर्ण संसार रचा,
पर फिर भी मानो कुछ छूट रहा,
ले हाथ कमंडल जल छिड़का,
मां शारदे का आह्ववान हुआ,
स्वरहीन प्रकृति में स्वर पनपा !
आकाश में कम्पन हुआ,
मौन पवन में हुई सरसराहट,
पक्षियों का कलरव गूंज उठा,
नदियों के नाद से उफान मचा,
अद्भुत गुंजित स्वर-गान हुआ,
चंहुओर स्वर का तान छिड़ा,
वीणावादिनी का वरदान फला,
प्रकृति को सुर-ताल मिला,
विद्या-विवेक का भान हुआ,
बंसत-पंचमी का ज्ञान मिला !
©Mridula Rajpurohit ✍️
। 🗓️ 6 February, 2022
© All Rights Reserved
पर फिर भी मानो कुछ छूट रहा,
ले हाथ कमंडल जल छिड़का,
मां शारदे का आह्ववान हुआ,
स्वरहीन प्रकृति में स्वर पनपा !
आकाश में कम्पन हुआ,
मौन पवन में हुई सरसराहट,
पक्षियों का कलरव गूंज उठा,
नदियों के नाद से उफान मचा,
अद्भुत गुंजित स्वर-गान हुआ,
चंहुओर स्वर का तान छिड़ा,
वीणावादिनी का वरदान फला,
प्रकृति को सुर-ताल मिला,
विद्या-विवेक का भान हुआ,
बंसत-पंचमी का ज्ञान मिला !
©Mridula Rajpurohit ✍️
। 🗓️ 6 February, 2022
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