...

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ग़ज़ल
कभी थमती नहीं हर पल रवाँ है
नहीं है ज़िंदगी कुछ, बस धुआँ है

तेरे पहलू में गुज़रे उम्र सारी
मेरी ख़्वाहिश अभी भी वो जवाँ है

ख़यालों की है मेरे पास तितली
कभी है वो यहाँ और फिर वहाँ है

"उतर कर देखा है आँखों में तेरी
अँधेरा है बहुत गहरा कुआँ है

कभी बाहर कुएँ से देख आके
बड़ा ही ख़ूबसूरत ये जहाँ है"

मेरी दुनिया समाई है तुझी में
ज़मीं है तू कभी तू आसमाँ है

"तेरी मग़रूरी ने तुझ को किया ख़ाक
कहाँ हूँ मैं खड़ा और तू कहाँ है

'सफ़र' तू बुलबुला है पल दो पल का
तुझे किस बात का अब भी गुमाँ है"

चला था मैं अकेला जिस सफ़र पर
वही मेरा "सफ़र" अब कारवाँ है
© -प्रेरित 'सफ़र'