...

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बूँदें बादल की...

दर्द उस काले बादल का कोई क्या जाने
उज्ज्वल बूँदों से धरती का कालिख जो धोया है..
नयनों में छाते दुःख के बादलों से स्वयं घिरा वो
धरती के आगे यूँ भी आँसू भर भर रोया है

जानता है भलीभाँति वो भी..इस युग में
कौन कहाँ असीम सुख पाया है
उसने तो अवसात कर धरती की ऊष्मा को
अपना सर्वस्व फिर उसी पर लुटाया है

अस्थिरता प्रस्फुटित हुई है उसकी
उमड़ घुमड़ गरज कड़क कर वो आया है
व्याकुलता प्रकट कर कुछ यूँ भी उसने
धरती की ऊष्मा में बूँदें बन ख़ुद को गँवाया है




© bindu