मेरी अधूरी कविताएं
आज बैठकर ज़रा कुछ ढूंढ़ लाते हैं
जो सीने पर है, वो बोझ हटाते हैं ।
कभी ख्वाब बनकर, कभी यूं ही याद आ जाती हैं
मेरी अधूरी कविताएं, मुझे रोज़ बुलाती हैं।
ना जाने कब से SAD हैं सभी
बंद किताबों के पन्नों में कैद हैं सभी ।
धूल, मिट्टी और जाने कितनी सर्दियां बीत गई ।
सोचती हैं, में उन्हें पहचानता ही नहीं
कभी कभी ज़ोर से...
जो सीने पर है, वो बोझ हटाते हैं ।
कभी ख्वाब बनकर, कभी यूं ही याद आ जाती हैं
मेरी अधूरी कविताएं, मुझे रोज़ बुलाती हैं।
ना जाने कब से SAD हैं सभी
बंद किताबों के पन्नों में कैद हैं सभी ।
धूल, मिट्टी और जाने कितनी सर्दियां बीत गई ।
सोचती हैं, में उन्हें पहचानता ही नहीं
कभी कभी ज़ोर से...