ग़ज़ल
दिल एक संग हो गया हालात जो मिले,
कैसे हो दिल ये शाद कि ग़म खा गए मुझे।
कश्ती का रुख़ भी जानिब ए साहिल नहीं रहा,
दरिया को बिन हवा के भला मौज क्या मिले।
हमने तो की वफ़ा हाँ मगर क्या मिला बदल ,
इस दिल को जो भी लोग मिले बेवफ़ा...
कैसे हो दिल ये शाद कि ग़म खा गए मुझे।
कश्ती का रुख़ भी जानिब ए साहिल नहीं रहा,
दरिया को बिन हवा के भला मौज क्या मिले।
हमने तो की वफ़ा हाँ मगर क्या मिला बदल ,
इस दिल को जो भी लोग मिले बेवफ़ा...