...

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वो तुम ही तो थे पापा...
मसरूफ़ रहा अल्हड़पन के गलियारों में,
दांव लगाकर वो खुशियां,हमको चमका कर चले गए;
वो उम्मीदों का लिए बोझ,खुशियों की आस लिए,
खोया रहा मैं खुद में ही,वो हमें बनाकर चले गये।

जब जब गिरा धरा पर हो अधीर,
तुमने ही मुझे संभाला था;
जब था संकटमय जीवन,जब दूर...